Monday, August 23, 2010

व्यथा !!



कभी खुली किताब था ,
आज बंद द्वार हूँ मैं |
जवाब सभी सवालों के थे ,
आज जवाब कि तलाश हूँ मैं |
दुनिया की उलझनों में उलझा ,
एक सीधा सा इंसान हूँ मैं |
जीवन-मरण नहीं जानता,
सत्य-असत्य नहीं पहचानता |
इस विशाल-कायी ब्रह्माण्ड में ,
शुन्य के सामान हूँ मैं |