Friday, May 17, 2013

क्या खोया, क्या पाया ?


क्यूँ सब होते हुए भी सुकून नहीं है ?
क्यूँ बे वजह दिल में दर्द कहीं है ?
क्यूँ खोया खोया सा यह एहसास है ?
क्यूँ ख्यालों में न कोई आस है ?
जैसा चाहा था वैसा आज सभी है ?
अच्छी नौकरी, अच्छा घर ,
फिर क्या कमी है ?
क्यूँ सब होते हुए भी सुकून नहीं है ?

क्यूँ खालीपन मन में समाये जा रहा है ?
क्यूँ अन्दर ही अन्दर अँधेरा छाता जा रहा है ?
क्यूँ आशाएँ-इक्चाएं आज ख़तम हो रही है ?
क्यूँ .... ?

कुछ बातें मन को विचलित कर रही है |
शायद मेरी इस्तिथि पर सवाल कर रहीं है |
एक आवाज़ जैसे अन्दर चीख भर रही है |
मेरे आगे के सफ़र का रास्ता पूछ रही है |
 और मेरी इस विडंबना पर हस रही है |

 वोह मुझसे पूछ रही है ,
 क्या यही तुम बनना चाहते थे ?
क्या यही जीवन का उद्देश्य था ?
क्या इसी के लिए तुम लड़ते थे ?
क्या यही तुम्हारा संघर्ष था ?
बातें तो बड़ी-बड़ी कहा करते थे |
पंछियों सी उड़ान भरा करते थे |
लक्ष्य अनंत रखा करते थे |
और दुनिया बदलने की सोचा करते थे |

आज तुम इसका हिस्सा बनते जा रहे हो |
भीड़ में पहचान खोये जा रहे हो |