Friday, October 23, 2015

नीला रंग

नीला रंग है...

आँखों का, जो सपने देखा करती हैं । 
झील का, जो प्यास बुझाया करती है ।
नील का, जो चमक उजागर करती है ।
युनान का, जहाँ शहरों में रौनक बसती है ।
आसमान का, जो ऊँचा सोचने को प्रेरित करता है । 
दर्द का, जो सहनशक्ति इस्त्रोत करता है । 
फ़ूलो का, जो सुगंध का उन्माद कराते है । 
नीलम का, जो भाग्य बनाया करता है । 
अशोकचक्र का, जो धर्म का प्रतीक है । 
पृथ्वी का, जो भ्रमांड में चमकती है । 
स्याही का, जिसपे यह कलम चला करती है ।

Wednesday, October 7, 2015

क्या होली, क्या दिवाली !

बचपन में अक्सर सोचा करता था,
क्यूँ बड़े लोगों को होली का शौक़ नहीं होता ?
क्यूँ दिवाली पर इनका पठाके चलाने का दिल नहीं होता ?
जी भर कर कभी ये क्यूँ न खिलखिलाते ?

आज उन सवालों का  जवाब नज़र आता है |
 इस विडम्बना पर मेरा मन मुस्कुराता है |
होली दिवाली तो अब रोज़ माना करती है |
रंगते-रंगाते हम रोज़ बाज़ारों में नज़र आते हैं |
पठाके हर दिन अब घरों में बजा करते हैं |
मिल कर न हस कर, हम एक-दूजे पर हस्ते हैं |
ख़ुशी की जगह दुसरे का दर्द ढूंढते हैं |

यह सब सोच कर बस एक ख्याल आता है ,
बचपन कि मासूम यादों को ताज़ा कर जाता है |
काश हम इंसान को इंसान समझ पते,
और अपने बचपन से कुछ सीख पते |