Friday, September 23, 2011

कारवां !!



जब कभी मैं पलट के देखता हूँ,
उन हसीन लम्हों को सोचता हूँ |
यादें मुझे स्तब्ध कर जाती हैं,
पलकों पे वो मेरी आसू छोड़ जाती हैं |
हाल-ऐ-दिल तब अजीब होता है,
मेरा रकीब जब करीब होता है |
वक़्त वहीं ठहर जाता है,
आँखों मैं जब उसका चेहरा मुस्कुराता है |
उसके होटों कि हसी न जाने क्या कर जाती है,
तनहाइयों में मेरे ख्वाब भर जाती है |
बातें तब उसकी याद आती हैं,
संघर्ष करने कि हिम्मत दे जाती हैं |
थोडा मुस्कुरा तब मैं कलम उठता हूँ,
कागज़ पर अपना दिल सवारता हूँ |
एक उत्पीड़न तब उठती है,
गुज़ारे वक़्त कि जब झांकी निकलती है |
अचानक ही मन शांत हो जाता है,
सवालों का गुलदस्ता सिरहाने छोड़ जाता है | 
शायद इस पल भर के सुकून को ही जीवन कहते हैं,
कारवां तो बस चलते ही जाता है |