Thursday, July 22, 2010

वक्त-वक्त की बात है .......

वक्त-वक्त की बात है,
लेकिन आज वक्त किसके पास है |
किसी ने भारत को सोने की चिड़िया कहा था |
चिड़िया तो उड़ चुकी है,
गिद्दों कि पकड़ अब बन चुकी है |
जो आज नेता बन बैठे हैं,
देश को चिड़िया-घर बनाने में जिनकी मुख्य रूचि है |
वक्त-वक्त की बात है,
लेकिन सोचने के लिए आज वक्त किसके पास है |

भारत में ही कबीर,
तुलसीदास जैसे साधू-संत हुआ करते थे |
आज तो इनकी शिक्षा भी लगभग उखड़ चुकी है |
स्वामी नित्यनंद जैसों से यह धरती लद चुकी है |
वक्त-वक्त की बात है,
लेकिन सोचने के लिए आज वक्त किसके पास है
 

गाँधी जी ने कड़े संघर्ष से आज़ाद कराया था |
अंग्रेज़ों से भारत का दामन छुड़ाया था |
सोचा राष्ट्र होगा चार धर्मों से चतुर्भुज,
आज तो जैसे बिखर रहा है सब-कुछ |
क्या एैसे भारत के लिए किया था इतना-कुछ ?
वक्त-वक्त की बात है,
लेकिन आज वक्त किसके पास है |

हे ईश्वर! अब आप ही किसी महात्मा को वक्त दीजिए ,
या स्वयम किसी रूप में अवतार लीजिए |
अब भारत को इन बिमारियों से मुक्ति दीजिए |


LOCATION : Home
TIME : 2005, one of my 1st few poems :)

3 comments:

Anand said...

Hmmm, yeah very thought provoking! Nice one.....

Rajat Narula said...

very very thought provoking creation, very unique presentation as well.

Dimple said...

Hello Gaurav,

Perfect work done! Nice verbiage...

Regards,
Dimple