लेकिन आज वक्त किसके पास है |
किसी ने भारत को सोने की चिड़िया कहा था |
चिड़िया तो उड़ चुकी है,
गिद्दों कि पकड़ अब बन चुकी है |
जो आज नेता बन बैठे हैं,
देश को चिड़िया-घर बनाने में जिनकी मुख्य रूचि है |
वक्त-वक्त की बात है,
लेकिन सोचने के लिए आज वक्त किसके पास है |
भारत में ही कबीर,
तुलसीदास जैसे साधू-संत हुआ करते थे |
आज तो इनकी शिक्षा भी लगभग उखड़ चुकी है |
स्वामी नित्यनंद जैसों से यह धरती लद चुकी है |
वक्त-वक्त की बात है,
लेकिन सोचने के लिए आज वक्त किसके पास है
गाँधी जी ने कड़े संघर्ष से आज़ाद कराया था |
अंग्रेज़ों से भारत का दामन छुड़ाया था |
सोचा राष्ट्र होगा चार धर्मों से चतुर्भुज,
आज तो जैसे बिखर रहा है सब-कुछ |
क्या एैसे भारत के लिए किया था इतना-कुछ ?
वक्त-वक्त की बात है,
लेकिन आज वक्त किसके पास है |
हे ईश्वर! अब आप ही किसी महात्मा को वक्त दीजिए ,
या स्वयम किसी रूप में अवतार लीजिए |
अब भारत को इन बिमारियों से मुक्ति दीजिए |
LOCATION : Home
TIME : 2005, one of my 1st few poems :)
3 comments:
Hmmm, yeah very thought provoking! Nice one.....
very very thought provoking creation, very unique presentation as well.
Hello Gaurav,
Perfect work done! Nice verbiage...
Regards,
Dimple
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